Tuesday, April 26, 2011

IS HAMAAM MEIN SAB NANGE -- MEDIA BHI

इस हमाम में सब नंगे, मीडिया भी

-- अन्‍तर्यामी

साप्‍ताहिक चौथी दुनिया ने अपने 25–—01 मई, 2011 के अपने अंक में ''26 लाख करोड् का महाघोटाला'' शीर्षक से मुख्‍य पृष्‍ठ पर एक रिपोर्ट छापी है जिस में कोयला मन्‍ञालय में हुये घोटाले का पर्दाफाश करने का दावा किया है। संयोगवश इस मन्‍ञालय का प्रभार स्‍वयं प्रधान मन्‍ञी डा0 मनमोहन सिंह के पास है।

साप्‍ताहिक के अनुसार इस घोटाले की जानकारी उन्‍हें मध्‍य प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी सांसद श्री हंसराज गंगाराम अहीर से प्राप्‍त हुई जिन्‍होंने अपने प दिनांक 18 नवम्‍बर 2010 को कंटरोलर एवं आडिटर जनरल आफ इण्डिया (सीएजी) को इसकी विस्‍तृत जानकारी दे दी है। सीएजी कार्यालय ने भी अपने पञ संख्‍या AMG-III/Coal Blocks/MP/2010-11/216. दिनांक 8 दिसम्‍बर 2010 द्वारा इसकी पावती सांसद महोदय को भेज दी है। अब इसकी जांच के बाद सीएजी किस निष्‍कर्ष पर पहुंचते हैं और अपनी क्‍या रिपोर्ट भेजेंगे यह तो समय ही बतायेगा।

पर इतना अवश्‍य है कि अभी तक इस संसनीखेज् रहस्‍योदघाटन पर सरकार ने अपनी जुबान नहीं खोली है। न आरोप लगाने बाला ही कोई मामूली व्‍यक्ति है और न ही छापने वाला कोई थैलाछाप समाचारप। आरोप एक जिम्‍मेदार सांसद ने लगाये हैं और एक ऐसे साप्‍ताहिक ने छापे हैं जो ब्‍लैकमेलर नहीं माना जाता। यह सा‍प्‍ताहिक 1986 से छप रहा है जिसे एक पूर्व सांसद निकाल रहे हैं।

सांसद और पञकार दोनों ही जानते है कि इतने गम्‍भीर आरोप लगाने का हशर क्‍या हो सकता है। झूठे आरोप लगाना एक आपराधिक कुकर्म है जिस कारण उन्‍हें जेल भी हो सकती है और मानहानि के जुर्म में भारी जुर्माना भी भरना पड सकता है।

सरकार को भी पता है कि चुप्‍पी सदैव निर्दोष होने का सबूत नहीं होती। कुछ लोग इसका अर्थ दोष की स्‍वीकारोक्ति भी मानते हैं। वैसे आज निर्दोष होने के दावे की कोई विश्‍वसनीयता भी नहीं बची है। 2जी स्‍पैक्‍टरम घोटाला हो या कामनवैल्‍थ खेल घोटाला सरकार के मन्‍ञी ए राजा और सुरेश कलमाडी भी छाती ठोंक कर निर्दोष होने का डंका पीटते थे। दोष और निर्दोष का निर्णय न तो आरोपी स्‍वयं ही कर सकता है और न इस पर जनता ही अपना फतवा सुना सकती है। इसका निर्णय तो अन्‍तता अदालत को ही करना होता है।

पर इस सारे प्रकरण में मीडिया की भी पोल खुल गई है। अपने आपको सदा सतर्क, निर्भीक, निष्‍पक्ष और अपने कर्तव्‍य के प्रति ईमानदार होने का दावा भरने वाला मीडिया आज स्‍वयं कटघरे में खडा दिख रहा है।

किसी बडे नेता, विशेषकर गुजरात के मुख्‍य मन्‍ञी नरेन्‍द्र मोदी के, स्‍वामीरामदेव के विरूद्व कोई भी छुटभैयया नेता या नौकाशाह आरोप लगा दे। कोई भी कुछ बोल दे। कोई अनजान स्‍वयंसेवी संस्‍था का सदस्‍य कोई आरोप जड् दे तो यह मीडिया के लिये एक ब्रेकिंग न्‍यूज बन जाती है जिस के लिये हमारी न्‍यूज चैनल घंटों का समय दे देते है। लम्‍बी लम्‍बी चर्चाये शूरू कर देते हैं वह। हमारे समाचार पत्रों के प़ृष्‍ठ भरे पडे रहते हैं। पर अब जब कि एक साप्‍ताहिक पत्र् ने एक सांसद के हवाले से गम्‍भीर आरोप लगाये हैं तो हमारे निर्भीक, निष्‍पक्ष, स्‍वतन्‍त्र् और अन्‍वेषी पत्रकारों की तो मानों आंख पर ही पटटी बंध गई हैख्‍ जुबान बन्‍द हो गई है।

यह एक ऐसा मौका था जब हमारे पकारों को अपनी कौशलता, निर्भीकता, स्‍वतंता व ईमानदारी के सिक्‍के जमा सकते थे। इस समाचार व आरोप को परम सत्‍य का रूप मान लेना भी उतना ही गलत होगा जितना कि उसे सफेद झूठ कह कर नकार देनाा न मीडिया ही इस पर अपना अन्तिम निर्णय सुना सकता है। पर इतना तो अवश्‍य है कि जैसे अन्‍य समाचारों व आरोपों पर मीडिया अपना मत व अपनी टिप्‍पणी प्रस्‍तुत करना अपना नैतिक कर्तव्‍य समझता है, वैसी ही कर्तव्‍यपरायण्‍ता का प्रदर्शन व परिचय उसे इस रहस्‍योदघाटन पर भी करना चाहिये था। वह सत्‍य की तह तक जाकर या उसे नकार देता या स्‍वीकार कर लेता। मीडिया का यह तो ऐसा अधिकार है जिसे भारत सरीखे जनतं में कोई चुनौति नहीं दे सकता। पर इस कर्तव्‍यपरायणता से मीडिया अपना पल्‍लू भी नहीं झाड् सकता। ऐसे में तो मीडिया की चुप्‍पी भी उतनी ही रहस्‍यमयी बन जायेगी जितनी कि सरकार की। तब तो इस हमाम में सब नंगे हैं वाली कहावत ही चरितार्थ हो जायेगी--मीडिया भी।

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